रोहिणी गोदबोले, एक ऐसा नाम जो भारतीय विज्ञान में महिलाओं की भागीदारी को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध था। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि कैसे विज्ञान और सामाजिक न्याय का मार्ग एक साथ चल सकता है। 1952 में जन्मी रोहिणी का पालन-पोषण एक ऐसे परिवार में हुआ जहां महिलाओं को केवल घरेलू कार्यों तक सीमित नहीं किया गया था, बल्कि उन्हें अपने सपनों का पीछा करने की आज़ादी भी दी गई थी। उन्होंने एक बार कहा था, “हमने हमेशा महिलाओं को घर के काम के साथ-साथ अपने सपनों का पीछा करते देखा था—सपने सीखने के, न कि सिर्फ नौकरी पाने के।”
शिक्षा से अनुसंधान की ओर: विज्ञान में एक प्रेरणादायक सफर
रोहिणी की यात्रा आसान नहीं थी। उन्हें विज्ञान में अपना करियर बनाने के लिए लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय में 12 साल तक व्याख्यान देने के बाद 1995 में भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) में पूरी तरह से अनुसंधान में कदम रखा। वहीं उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय बिताया और यहीं उनकी पहचान एक प्रमुख भौतिक वैज्ञानिक के रूप में स्थापित हुई। अगले दो दशकों में, रोहिणी ने कण भौतिकी में खुद को प्रतिष्ठित किया। उन्होंने एक महत्वपूर्ण घटना की भविष्यवाणी की, जिसे आज “ड्रीस-गोदबोले प्रभाव” के नाम से जाना जाता है। इस खोज ने नई पीढ़ी के कण कोलाइडर्स के डिज़ाइन में सहायता की और उन्हें भारत के तीन राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों की सदस्यता से नवाज़ा गया। पद्म श्री और फ्रांस सरकार के ऑर्ड्रे नेशनल ड्यू मेरिट सहित कई पुरस्कारों ने उनकी उपलब्धियों को मान्यता दी।
विज्ञान में लैंगिक समानता के लिए संघर्ष
विज्ञान में सफलता के अलावा, रोहिणी ने लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए भी कई प्रयास किए। 2000 के दशक की शुरुआत में, जब विज्ञान सम्मेलनों में लिंग पर चर्चा करना आम बात नहीं थी, रोहिणी ने इसे बदलने का बीड़ा उठाया। उन्होंने भारतीय विज्ञान अकादमी (IASc) में यह प्रस्ताव रखा कि महिलाओं की भागीदारी पर भी चर्चा की जाए। जब उन्होंने पहली बार यह सुझाव दिया, तो कई लोगों ने आश्चर्य से देखा। उन्होंने कहा था, “900 सदस्यों में जब आप महिलाओं की इतनी कम संख्या देखते हैं, तभी असलियत समझ में आती है।”
रोहिणी के इन प्रयासों ने विज्ञान में महिलाओं की समस्याओं को मुख्यधारा में लाने में मदद की। आज जब हम विज्ञान सम्मेलनों में लैंगिक समानता पर चर्चा होते हुए देखते हैं, तो इसमें रोहिणी गोदबोले का महत्वपूर्ण योगदान है।
विज्ञान और न्याय का संगम
रोहिणी गोदबोले का जीवन हमें सिखाता है कि एक वैज्ञानिक होने का अर्थ सिर्फ प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज में परिवर्तन लाने की जिम्मेदारी भी है। उन्होंने न केवल कण भौतिकी में अपनी अमिट छाप छोड़ी बल्कि विज्ञान में लैंगिक समानता के लिए संघर्ष भी किया। उनकी विरासत भारतीय विज्ञान और समाज को हमेशा प्रेरित करती रहेगी।